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    कबीरदास का जीवन परिचय – Kabir Biography Book Pdf Free Download

    कबीर जीवनी और जीवन वृत

    भारतीय संत-कवियों में जितनाधिक सद्गुरु कबीर पर लिखा जा चुका है और लिखा जा रहा है, स्यात् उतना किसी अन्य संत-कवियों पर नहीं लिखा गया है ।

    इसका कारण है कबीर की निष्पक्षता, दो टूक कहने का ढंग और बड़े-बड़े रहस्यात्मक गुत्थियों को सरल-सहज उपमाओं के द्वारा व्यक्त करने की शैली ।

    साथ ही, जहाँ अन्य संत-कवि मानवता एवं शाश्वत सत्य की बातें कहते हुए भी किसी परंपरा से जुड़े रहकर किसी धर्मग्रंथ, ईश्वर-अवतार, पैगंबर आदि की बैसाखी पकड़े रहे, वहाँ कबीर सारी परंपराओं से हटकर सबके सार-तत्व को स्वीकार करते हुए “पक्षपात नहि बचन, सबहिं के हित” की बातें कहते रहे, वह भी सरे बाजार चौराहे पर खड़े होकर एक अकेला और निर्द्वन्द्व |

    उनकी सत्यनिष्ठा एवं निष्पक्षता ने उनके व्यक्तित्व को ऐसा महनीय मोहक और चुम्बकीय बना दिया था कि जो उनके पास गया, उनका ही होकर रह गया ।

    कबीरदेव ऐसे महत्तम संत हैं जो केवल भारतीय परंपरा ही नहीं, अपितु विश्व मानवता के मूल उत्स को पकड़ते हैं और सबको वहीं ले जाना चाहते हैं, जहाँ पहुँचकर वर्ण, वर्ग एवं मत-पंथगत सारे भेदभाव निस्सार हो जाते हैं और जहाँ से प्रेम की निर्मल, स्निग्ध और शीतल धारा प्रवाहित होकर सबको सराबोर कर देती है ।

    पूरी मानवता को आत्मसात करने वाली प्रेम की निर्मल धारा में निमज्जित होकर सत्यनिष्ठ कबीरदेव ऐसे चौराहे पर खड़े हैं, जहाँ सारे रास्ते आकर मिलते हैं। यह कहना अत्युक्ति न होगी कि कबीर में पूरी मानवता का सार समाया हुआ है ।

    “कबीर पहले भारतवासी हैं, जिन्होंने सारी मानव जाति के लिए एक सामान्य धर्म का निर्भीकता के साथ उपदेश दिया |”

    सुंदरलाल

    जीवन-काल

    सद्गुरु कबीर का विक्रमी संवत 1456 की जेष्ठ शुल्क पूर्णिमा को काशी में जन्म तथा विक्रमी संवत् 1575 की माघ शुक्ल एकादशी को मगहर में देहावसान, यह पंथ तथा अधिकतम भारतीय विद्वानों-द्वारा मान्य है । इस प्रकार कबीर साहेब की पूरी आयु लगभग एक सौ बीस वर्ष की होती है ।

    जन्म

    काशीवासी मुसलिम जोलाहा नवयुवक नीरू अपनी पत्नी नीमा का गौना कराकर लहरतारा तालाब होकर अपने घर आ रहे थे । नीमा को प्यास लगी। वह सरोवर पर पानी पीने गयी ।

    कहा जाता है उसने एक खिले हुए कमल-फूल पर सुन्दर बालक को किलकारी मारते हुए देखा । अर्थ है कि एक टोकरी में फूल-पत्ते की शय्या पर एक नवजात शिशु पड़ा हुआ मिला ।

    बहुत सोच-विचार के बाद नीरू-नीमा जुलाहा दंपती उस शिशु को उठाकर घर ले आये और उसे पालने-पोषने लगे । वही बच्चा कबीर के नाम से प्रख्यात हुआ ।

    इस प्रकार कबीर साहेब का जन्म-स्थान काशी है । कुछ लोगों का विचार है कि नीरू-नीमा अपने गौना के समय नहीं, किन्तु उसके कई वर्षों के बाद लहरतारा पर कबीर – शिशु को पाये थे । यही स्वाभाविक लगता है ।

    चमत्कारी प्रसंग

    शिशु लहरतारा तालाब पर कहाँ से आया ?

    यह एक स्वाभाविक प्रश्न है । पुराकाल से जनमत इसका उत्तर देता रहा कि एक विधवा या कुमारी ब्राह्मणी की कोख से यह शिशु पैदा हुआ था तथा वही लोक-लाज के डर से शिशु को लहरतारा तालाब पर छोड़ गयी थी।

    कुछ लोगों ने तो यहाँ तक अपना मत व्यक्त कर डाला है कि यह शिशु स्वामी अष्टानन्द का औरस पुत्र था, किन्तु वे यह बता नहीं सकते थे, इसलिए उन्होंने अपने गुरु रामानन्द से इसे चमत्कारी रूप देकर बताया कि यहं शिशु आकाश से उतरी हुई एक ज्योति का परिणाम है ।

    पांचवां अध्याय : जीवन तथा जीवनवृत्त

    कबीर साहेब की वाणियों में आये हुए आध्यात्मिक रूपकों के रहस्य को न समझकर तथा उनका स्थूल अर्थ कर विद्वानों ने उनको गृहस्थ सिद्ध करने की चेष्टा की है जो सर्वथा अनर्थ है ।

    कुछ विद्वान कबीर साहेब को आजीवन गृहस्थ बताते हैं और कुछ बताते हैं कि वे पहले गृहस्थ थे किन्तु पीछे से विरक्त हो गये थे ।

    इतिहास ग्रन्थ के अभाव में किसी महापुरुष के जीवन-दर्शन को समझने के लिए दो माध्यम हैं, एक उनकी परम्परा जो बाह्य साक्ष्य है और दूसरा उनका साहित्य जो अन्त स्साक्ष्य है ।

    यह सर्वविदित है कि कबीर साहेब “देश विदेशे हौं फिरा ” होते हुए भी समय-समय से काशी में अधिक रहते थे । जहाँ वे रहते थे वही आजकल कबीर चौरा के नाम से प्रसिद्ध है । दक्षिण भारत के प्रसिद्ध विद्वान पण्डित

    सर्वानन्द, जिन्होंने दूसरों को परास्त कर अपना नाम सर्वाजीत रखा था, कबीर साहेब से प्रभावित होकर उनके विरक्त शिष्य बन गये थे और उनका नाम पड़ा था श्री श्रुतिगोपाल साहेब ।

    वे ही काशी कबीर चौरा के प्रथम गद्दीनशीन हुए । उसके बाद परम्परा चली और आजकल उसकी इक्कीसवीं पीढ़ी है। यह पूरी परम्परा विरक्त है ।

    यहाँ कबीर साहेब के विरक्त होने का ही प्रमाण मिलता है । इसके अलावा श्री भगवान साहेब की भक्ताही गद्दी परम्परा तथा जागू साहेब की परम्परा जो कबीर साहेब के काल से चली आयी है, पूर्ण विरक्त है।

    इन सबकी मान्यता है कि कबीर साहेब विरक्त थे । कबीरपन्थ के श्री धर्म साहेब की शाखा में गृहस्थ तथा विरक्त दोनों प्रकार की गद्दियाँ हैं । वे भी कबीर साहेब को विरक्त मानते हैं।

    देश-विदेश में फैले हुए कबीर पन्थ के हजारों मठों तथा उनके भक्तों में कबीर साहेब के आजीवन विरक्त होने की ही बात फैली है ।

    नवां अध्याय : कबीर साहेब के उपदेश

    कुसंग-त्याग और साधु-संग ग्रहण

    आदमी कुसंग में पड़कर पतित होता है। केला के साथ में यदि बेर के पेड़ लग जायं तो बेर के काँटे से केले के पत्ते चींधी-चींधी करके फटते हैं इसी प्रकार बुरों की संगति से मनुष्य दुखी होता है ।

    अतएव सदैव साधु की संगति करो । वह तुम्हारे मन की पीड़ा को हरेगी और दुष्ट की संगति तो ओछी है । इसके फल में रात-दिन केवल उपद्रव है । अच्छी संगत से सुख मिलता है और बुरी संगत से दुख ।

    इसलिए सद्गुरु कबीर कहते हैं कि वहाँ जाना चाहिए जहाँ अच्छी संगत हो । हे मरजीया-गोताखोर !

    ज्ञानामृत पी । क्या पाताल में धंस कर मरता है । गुरुकृपा तथा संत-संगत से कल्याण-द्वार पर आ जा ।

    जीवन वृत्त

    कबीर साहेब का जीवन वृत्त क्या था ? उन्होंने अपने जीवन-निर्वाह का धंधा क्या चुना था ? यदि कबीर साहेब जुलाहा के यहाँ पाले गये, तो बड़े होकर कपड़ा बुनना तथा उसे बेचना उनका निर्वाह-धंधा रहा होगा ।

    उनके प्रामाणिक ग्रन्थ बीजक में चरखा-करघा एवं कपड़ा बुनने का रूपक आया है । वैसे नाई, कहार, कुम्हार, पण्डित आदि अनेकों के रूपक आये हैं |

    कबीर मसूर pdf

    कबीर ग्रंथावली pdf

    लेखक अभिलाष दास-Abhilash Das
    भाषा हिन्दी
    कुल पृष्ठ 137
    Pdf साइज़11.4 MB
    Categoryआत्मकथा(Biography)

    संत कबीर की जीवनी हजारीप्रसाद द्विवेदी द्वारा लिखित PDF

    कबीर का जीवन परिचय – Kabir Narrative Pdf Free Download

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